ओझा जी के द्वारा लिखी गयी किताबें हैं :-

नैवेद्यम्

निर्माल्यम्

सत्यम्-शिवम्

शिवम्-सुन्दरम्

विप्राः बहुधा वदन्ति

नैवेद्यम्

ओझा जी के प्रथम निबंध-संग्रह " नैवेद्यम् " में कुल २४ निबंध है। रुचिर वैविध्य से सम्पन्न यह निबंध -संग्रह अपने विभिन्न रूचि -रस-रंग , विभिन्न अकार- प्रकार -संस्कार के निबंधों के चलते पर्याप्त महत्वपूर्ण एवं मूल्यवान हो गया है। इसमें एक ओर " ब्राह्मी संगीत " जैसा निबंध है तो दूसरी ओर " सुअर बड़ा कि मैं " । एक ओर " जलाशय की अन्तरात्मा एवं " देवी से साक्षात्कार " जैसे लंबे और गंभीर निबंध है , तो दूसरी और " तरकारी वाला " और "बहादुर की चाय " जैसे लघु और अपेक्षाकृत कम गंभीर निबंध। " एक ओर "धूप सुंदरी " और "संध्या सुंदरी " जैसे प्रकृति प्रेम और दार्शनिकता से जुड़े निबंध है तो दूसरी ओर " रोटी का सवाल " और " ॐ नमो द्रव्य देवाय " जैसे कटु- कठोर वास्तविकता से जुड़े निबंध। यदि " मेघ न होते ", " यदि पहाड़ न होते ", " जब मौत मर जाती है " कुछ ऐसे निबंध भी हैं जो सनातन साहित्यिक सम्पदा से संपन्न हैं और बारंबार आस्वादनीयता का आमंत्रण देते हैं ।

निर्माल्यम्

ओझा जी के दूसरे निबंध-संग्रह " निर्माल्यम् " में कुल २१ निबंध हैं । इन निबंधों के शीर्षक कुछ इस प्रकार है -" मैं मेघ होना चाहता हूँ" , " निद्रादेवी का स्तुतिगान ", " कुत्ते ही प्यार करना जानते हैं ", " यदि पेड़ न होते ", " दुखी " , " बसगीत महतो की बेवा " ," महादेव बो पनेरिन " ," रनिंग ट्रेन्स "। ये निबंध अपनी विषय- वस्तु एवं प्रस्तुति से पाठकों को पर्याप्त प्रभावित करते हैं । ये सभी के सभी उच्य कोटि के निबंध हैं जो लेखक की गहन अन्तर्दृष्टि , उसका प्रकृति-प्रेम , उसकी मौलिक चिन्तनशीलता एवं दार्शनिकता के प्रबल प्रमाण प्रस्तुत करते हैं । इस संग्रह में कुछ समान्य व्यक्तियों से सम्बन्धित व्यक्ति चित्र भी हैं जो मूल मानवीय संवेदनाओं से सराबोर हो अपने ढंग के अनूठे व्यक्ति चित्र बन पड़े हैं ।

सत्यम् शिवम्

ओझा जी के तीसरे निबंध-संग्रह " सत्यम - शिवम् " में कुल १४ निबंध संगृहीत हैं । इस संग्रह में दो निबंध तो ऐसे हैं जो अपनी मौलिक विचारणा एवं चमत्कारिक उद्‌भावना से पाठकों को बेहद चमत्कृत करते हैं । ये निबंध हैं " मै गीध होना चाहता हूँ " , और " मै अंधकार में खो जाना चाहता हूँ" । लेखक क्यों गीध होना चाहता है, और क्यों अंधकार में खो जाना चाहता है, यह तो लेखक ही अच्छी तरह जानता है और उसने अपनी इस चाहत के लिए अपनी ओर से पर्याप्त अकाट्‍य तर्क भी प्रस्तुत किए हैं । पर निश्चय ही लेखक की यह विलक्षण चाहत अध्ययनशील अध्येताओं को विलक्षण रूप से चमत्कृत करती है । फिर इस संग्रह में कुछ ऐसे निबंध भी है जो बेहद करुणाजनक है। ऐसे निबंधों से लेखक की सहृदयता ,संवेदनशीलता , एवं करुणामयता स्वयमेव सिद्ध हो जाती है। इस कोटि के निबंधों में "बैल - विदाई " ," रामानन्द की पीड़ा " , "पुत्र शोक" आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इस संग्रह में भी कुछ ऐसे व्यक्ति -चित्र हैं , कुछ ऐसे उपेक्षित व उपेक्षणीय चरित्र जो शुद्ध सात्विक सर्जन के सुधा- संस्पर्श को पाकर सतत्जीवी, सदाजीवी हो गये हैं।

शिवम्-सुन्दरम्

ओझा जी के चौथे निबंध संग्रह " शिवम् सुंदरम् " में कुल १८ निबंध संकलित हैं । इस संग्रह में कुछ ऐसे निबंध हैं जो पाठकों को व्यापक - विराट, असीम - निस्सीम , अनादि - अनन्त की ओर ले जाते हैं , यथा " उड़ जा पंछी दूर गगन में ", " नील गगन के तले ", " काल प्रवाह की अनुभूति ", " चेतना के गहनतर गह्वर में ", यह निबंध चतुष्टय मानवीय दृष्टि को, जीवनानुभव को वृहत्तर परिप्रेक्ष्य से , महत्तर संदर्भ से जोड़ता है । साथ ही कुछ ऐसे निबंध हैं जो निबंधकार की अनन्य मौलिक दृष्टि और शैली के परम परिचायक हैं , यथा "जब साबुन खो गया", "सुबह- सुबह उल्लुओं से भेंट", " कुत्तों के सामने मुँह दिखाने लायक नहीं रहा " । साथ ही इस संग्रह में भी कुछ उपेक्षित और उपेक्षणीय व्यक्तियों के कालजयी शब्दचित्र हैं । कुछ विरल करुणा से भरे निबंध भी हैं, यथा " एक रिटायर्ड टीचर की कहानी ", " कन्या विदाई किंवा करूणरस ", " कुत्ते की हत्या " आदि । इन निबंधों के सम्यक - समग्र अध्ययन - अनुशीलन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि लेखक की दृष्टि धरती से आकाश तक है , क्षण से अनन्त तक हैं ,स्थानिकता से सार्वभौमिकता तक है, सविशेष साकार से लेकर निर्विशेष - निराकार तक है। ऐसी मौलिक मानवीय , उदात्त और उत्कर्षिणी दृष्टि आज के साहित्य में दुर्लभ ही है । औपनिषदिक संस्कार से पल्लवित-पुष्पित प्रस्फुटित ये निबंध वास्तव में हिन्दी साहित्य की शक्ति सामर्थ्य और समृद्धि के सूचक हैं और उसके भंडार की श्री वृद्धि करने वाले हैं ।


विप्राः बहुधा वदन्ति

रवीन्द्रनाथ ओझा की कुछ कविताओं के मुख्यांश..!

हम हों केवल हिन्दुस्तानी

मिट जाएँ अब जाति - धरम सब, मिट जाएँ नफरतरासी,
हम हों केवल हिन्दुस्तानी , हों बस केवल भारतवासी ।

मानववाद ही एक धरम हो, मानववाद हो एक करम ,
मानव सब धरमों से प्यारा , कोई न मन में रहे भरम ,
हर नर राजा , नारी रानी , मिटे सभी वैषम्य - कहानी ,
गूंजे चहुँ दिसि दिगदिगंत में साम्य और समता की बानी,
हर कुटिया मालिक हो अपनी , यहाँ न कोई दासादासी,

उठ ,मंगलम के गीत लिख

नैराश्य में , निष्कर्म रहना यह
महा दुष्कर्म है ,
प्रतिकूल से संघर्ष करना ही महा सदधर्म
है,
आलोक-उज्ज्वल जगत कर दे,
तिमिरनाशन, तम को भगा ।
उठ , मंगलम के गीत लिख
औ मंगलम के गीत गा ,
उठ , जागरण के गीत लिख
औ जागरण के गीत गा ।






देश मुदित कब होगा ?

अन्धकार से घिरे जगत में सूर्य उदित
कब होगा ,
कब होगा यह तमस तिरोहित देश मुदित
कब होगा ?
अमर शहीदों के सपनों का सुख
-स्वराज्य कब होगा,
बापू के सपनों का चर्चित रामराज्य कब
होगा?
अन्धकार से घिरे जगत में सूर्य उदित
कब होगा ,
कब होगा यह तमस तिरोहित देश मुदित
कब होगा ?

आज विदाई लेता हूँ

मन को किया अब ईश-समर्पित ,
देह जगत को देता हूँ ,
क्या लेना-देना दुनिया से,
आज विदाई लेता हूँ।

जब तक जिया नहीं कुछ समझा,
अब समझा जब जाना है,
गलती हुई अनेकों लेकिन ,
उन्हें नहीं दुहराना है।



ओझा जी की कुछ कविताओं का गीत रूपांतरण !

Kaila Balamua Se Pyar Sajani / Bhojpuri Lok Geet / Cuckoo Voice: Ajay Kumar Ojha
Poet  : Rabindra Nath Ojha

देशभक्ति गीत
" हम हों केवल हिन्दुस्तानी ,
   हों बस केवल भारतवासी "

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