"मै मेघ होना चाहता हूँ"से ..!
( "निर्माल्यम्" पुस्तक से लिया गया। )
धरती मुझे तृप्त नहीं कर पायी - इसलिए मैं आकाश का
अभिलाषी बन गया। सीमा मुझे बाँध नहीं सकी, इसलिए मैं
असीम का पुजारी बन गया । सांत मुझे आकृष्ट न कर
सका, इसलिए अनंत का आराधक बन गया।
Radhika Devi Wife of Prof(Dr)Rabindra Nath Ojha
श्रीमती राधिका देवी जी की प्रेरणा से
A RARE PERSONALITY UNHIGHLIGHTED....!
आलोक - उज्ज्वल जगत कर दे -
तिमिरनाशन, तम को भगा ।
उठ, मंगलम् के गीत लिख
औ' मंगलम् के गीत गा ।
मुझे तीन चीजें बहुत पसन्द पड़ती हैं ,मुझे तीन दृश्य बेहद पसन्द पड़ते हैं :-
१. निबिड़ निशीथ के शांत अंधकार में दीप - मालिकाओं से ज्योतित - भास्वर हहराती लहराती बेगवती गतिमति रेलगाड़ियां ।
२. शान्त, एकान्त कलकल - छलछल करती हुई लघूर्मियों ( लघुलघु लोल लोल लहरियों ) से रोमांचित - प्रसन्न,भावविह्वल प्रवाहवती सरिता की चंचल धारा।
३. प्रभात और संध्या काल के शांत लालिमा - स्नात आकाश में शान्त एकान्त एकाकी पक्षी की अनन्त उड़ान !
धरती मुझे तृप्त नहीं कर पायी - इसलिए मैं आकाश का
अभिलाषी बन गया। सीमा मुझे बाँध नहीं सकी, इसलिए मैं
असीम का पुजारी बन गया । सांत मुझे आकृष्ट न कर
सका, इसलिए अनंत का आराधक बन गया।
“ मैं अपने जीवन में तीन लोगों से बहुत प्रभावित रहा हूँ - आइन्स्टीन , महात्मा गाँधी और रवीन्द्र नाथ टैगोर। ओझा जी में मैं तीनों महापुरूषों की छवि पाता हूँ ।"
" A tough administrator, a widely read teacher with a flair for literature, a warm individual and at the same time a stickler for discipline and man with the courage of his convictions."
राघव शरण पाण्डेय ( भारतीय प्रशासनिक सेवा )
प्रियछात्र - (प्रो .रवीन्द्रनाथ ओझा)
“ Apart from being a distinguished teacher and a successful writer, another aspect of Shri Ojha's personality that touches me the most is the human element in him. In my opinion, it is this element that makes him outstanding. To appreciate others' problems and attempts to resolve them in the most possible humane manner has been the most focused thing in his nature."
Krinwant Sahay (Indian Revenue Service)
प्रियछात्र - (प्रो .रवीन्द्रनाथ ओझा)
“Considering his love for and contribution to Hindi, Prof. Ojha was nominated a member of Hindi Advisory Committee of Ministry of Railways and then again to the Ministry of Law and Social Justice , Government of India."
Prof. B.N.Chaubey
M.J.K COLLEGE Bettiah
Bihar, India
कुछ लोग टेनिस के बिना जी नहीं सकते थे। उन्हें tennis addict कहना उचित होगा। ओझा जी उसी श्रेणी में आते हैं। वह क्लास में पढाने और टेनिस खेलने में कभी भी अवकाश नहीं लेते थे। ओझा जी खेलते समय उसी तरह लीन हो जाते थे जिस प्रकार कोई साधू तपस्या में डूब जाता है।
एक बार Shri J.S. Barara IAS अपना कैमरा लेकर आये। उन्होंने केवल ओझा जी का फोटो खींचा और कैमरा बंद कर दिया। उन्होंने बताया कि ओझा जी में मैंने एक अनोखी बात देखी। संभवतः ओझा जी विश्व के एकमात्र खेलाड़ी हैं जो धोती पहन कर भी इतना अच्छा टेनिस खेल सकते हैं। यह टेनिस का भारतीयकरण है।"
प्रो जुबैर अहमद
M.J.K COLLEGE Bettiah
Bihar, India
“साठ के दशक के पूर्वार्ध में अंग्रेजी विभाग के वार्षिकोत्सव के अवसर पर श्री आर एन ओझा ने Shakespeare के एक कठिन नाटक 'A Mid-Summer Night's Dream' का मंचन अपने ही निर्देशन और निगरानी में कराया।हम सभी साथियों ने प्रोफेसर आर एन ओझा जी के कठिन परिश्रम से कराये गए अभ्यास से ड्रामा को बड़े ही कुशल तरीके से रंगमंच पर प्रस्तुत किया।
Chairman, District Collector Shri C.R.Vaidyanathan IAS सहित सभी ने नाटक के निर्देशक प्रोफेसर आर एन ओझा की कोशिशों की भूरि -भूरि प्रशंसा की तथा उन्हें हार्दिक बधाई दी। बेतिया (Bettiah) शहर में पहली बार इस तरह के नाटक का आयोजन किया गया था जिसकी प्रशंसा दर्शकों ने इतनी खुलकर की। इस सफलता का पूरा श्रेय आदरणीय प्रोफेसर आर एन ओझा को जाता है।"
मोहम्मद शमी
प्रियछात्र - (प्रो .रवीन्द्रनाथ ओझा)
“मैंने विश्व का श्रेष्ठतम साहित्य पढ़ा है और श्रेष्ठ साहित्यकारों-कलाकारों की उपलब्ध जीवनियों के आधार पर मुझे पता है कि श्रेष्ठ साहित्य का सृजन करनेवाले लेखक -कवि के लिए श्रेष्ठ मनुष्य होना आवश्यक नहीं है , अपने पत्र में आपने अपनी जिन चार पुस्तकों की चर्चा की है , उन्हें मैंने नहीं पढ़ी है , इसलिए मुझे नहीं पता कि साहित्यकारों की श्रेणी में आप कहाँ बैठते हैं ; परन्तु विगत दो दशकों के पत्र-व्यवहार से मैं जानता हूँ और पूर्ण विश्वास से कह सकता हूँ कि ईश्वर ने आप जैसा श्रेष्ठ मनुष्य बनाना अब बहुत कम कर दिया है।
पत्राचार खूब हुआ है पर प्रत्यक्ष दर्शन नहीं हुआ। मैं बहुत भावुक हूँ।मेरे पिता बहुत छोटे में ही मुझे छोड़ कर चले गए। मैं नहीं जानता मेरा -आपका पूर्व जन्म का कोई रिश्ता है या नहीं। लेकिन आप ने मुझे अहैतुक स्नेह दिया
है।"
डॉ विजय प्रकाश
मंत्रिमंडल सचिवालय ( राजभाषा ) विभाग पटना ( बिहार)